Thursday, November 20, 2014

थारु समुदाय मे कनिया–पुतरी आ घरवा–दुवरवा के खेल

थारु समुदाय मे कनिया–पुतरी आ घरवा–दुवरवा के खेल 
                                                                
अगस्ट २२, २०१०
मानव जीवन सार्थक, सफल आ पूर्ण बनावै के लेल समुदाय मे लोग सब आवश्यकता अनुसार अनेक चीज विकास क्याके वकरा व्यवहार मे उतारैत आइबरहल छै । येहनं चीज सब मे थारु समुदाय के कनिया पुतरी तथा घरवा दुवरवा के खेल के ल्या सकैछै । 

कनियापुतरी थारु समुदाय मे मुख्य रुप मे छोट-नान्ह बच्चा सब (लगभग ३ से ९ वरिष) के खेलैवाला खेल चियै । यी परिवार, समाज मे समाजिक भ्यारहल घटना अनुसार बालबच्चा सब के सामाजिकीकरण करै वाला  मनोरन्जनयुक्त खेल चियै । यी खेल कन्हिक पैध-पैध बच्चो सब सेहो आपन फुर्सत  के समय मे खेलै छै त छोटका-छोटका बच्चा सब हर्दम खेलैत रहैछै ।                                    
कनियापुतरी मे कनिया माने कनिया आ पुतरी माने पुतला । अर्थात् कनियापुतली माने कनिया के पुतला युक्त मनोरन्जनात्मक खेल । यते कनिया के मात्र चर्चा हैतो वास्तविक रुप मे यै खेल मे औरो अन्य बहौत पात्र सब जेनं माय, बाप, दीदी, दाजु, बहैन, भाई, सौस, ससुर, ननैद, दियादनी, दियोर, भेसुर आ बालबच्चा के संगेसंगे नटुवा तथा बाजावाला सब के सेहो पुतला सब आ-आफन सामर्थ तथा व्यवस्थानुसार रहैछै् । अर्थात् एकटा आदर्श परिवार के प्राय: सब सदस्य सब पुतला रुप मे खेल मे मौजुद रहैछै् ।

                                                  
खास क्याके यी पुतरी सब फटलहा, काम नैलागैवाला कपरा तथा टुक्रा-टुक्री सब से बनल रहैछै मगर पुरने पटलहे कपरा होना चाही सेहो कोनो जरुरी नै । उसब आ-आपन सामर्थ तथा परिवारिक सहयोग अनुसार जे जेहेन किसिम के कनियापुतरीर पुतरी बनासकैछै । 

यी पुतरी  सब लगभग ३ इन्च से ९ ईन्च लम्बार्इ के रहैछै । यकर संगेसंगे माइट वा मुज से बनल छोटछोट खटौली रहैछै  जकरा नीक से अनेक रंग से रंग्याके वै मे कनिया विदा करैछै । 

यी पुतरी सब बच्चा सब के मैया, काकी वा दीदी सब आ-आपन फुर्सत अनुसार बन्या दैछै । पुतरी  सब बनाबै बाला के फुर्सत, सीप, लगन तथा उपलव्ध आवश्यक कच्चापदार्थ ईत्यादि अनुसार यी साधारण से ल्याके रंग विरंग के हेछै । कोइयो रंग विरंगी कपडा से रंग विरंगी पुतरी बनावैछै त कोइयो साधारण उजरा कपडा से साधारण । अकर संगेसंगे कनिया के उसब थारु संस्कुति अनुसार अनेक किसिम के  गहनास् कपार मे मँगटीका, नाक मे नथिया, बुलाकी, फुलिया, कान मे सोन वा कुण्डल, कनैली, घाँटी मे हँसुली, चन्द्रहार, सिक्री, टका के चन्द्रहार, तथा कठसैर, बाइह मे जसन, बांक, बाजु, कबजा मे मोठा, चूडी, बरही, औगुरी मे औठी, डार मे हरहरा, पाइर मे कडा, पैरी, छारा तथा टांग के औगुरी मे ठेसा नामक गहना सब  लग्याके और सुन्दर किसिम के कनिया बनावैके छै ।

यै किसिम से बच्चा सब के मैया, दीदी तथा काकी सब सेहो पुतरी बनाबैत काल आनन्द लैत रहैछै त आपन छोट-छोट बच्चा सब के खेल मे लग्याके आपना बेसी काम करैले समय पावेछै । 

यी पुतरी सब बनावै मे कोनो खास खर्चो नै हैछै , सब जगह मे बनावैवाला कच्चापदार्थ आसानी से उपलब्ध भेल त काम नै लागै वाला कपरा के पून: प्रयोग सेहो भेल आ फेन वातावरण सेहो खराब है से बाँचल । 

नेपाली मे पुतली तथा अग्रेजी मे Dolls वा Puppet के कुछ हदतक थारु समुदाय के कनियापुतरी के परिवर्तित रुप मानल ज्यासकैछै मगर हुबहुब कनियापुतरी खेले चियै से नै । कथिले त पुतली वा गुडिया से एकटा बच्चा (Baby) के पुतला के भाव मात्र बुझावैछै त कनियापुतरी से कनिया, बर तथा अन्य सदस्य सहित के । यकर अलावा पुतली के जबकि मनोरंन्जन के एकटा रुप मे मात्र प्रयोग हैछै त कनिया पुतरी के समाज मे बालबच्चा सब के खेल के माध्यम से मनोरंजन के संगेसंगे अप्रत्यक्ष रुप से सामाजिकीकरण करै के पैध सामाजिक अश्त्र के रुप मे ।

थारु समुदाय के कनिया-पुतरी विषय मे अखनी तलैक कोनो खास वैज्ञानिक अध्ययन भेल्छै, नै देखै मे आबै छै । तैयो यै खेल के हाव भाव, अर्थ आ व्यवहार के गरिमा विचार करने से यकर उत्पति तथा विकास सभ्यता के सँगसँगै अर्थात् आई से बहौत पहिने  भेल हेतै से अनुमान क्याल जया सकैछै । 

यी पुतरी खेल मे २-४ परिवार के बच्चा सब एक ठाम मे आ-आपन पुतरी साथ जम्मा भ्याके यी खेल खेलैछै । यै खेल मे खास क्याके  दुई समूह हैछै-कनिया पक्ष आ दोसर बर पक्ष । बच्चा सब पहिने एक ठाम मे जम्मा भेला के बाद उसब आपस मे समुह सब छुट्टयाके बर पक्ष एक ठाम मे तथा कनिया पक्ष दोसर ठाम मे अलगे कनिया पक्ष कनिया के पुतरी आ बर पक्ष बर के पुतरी साथ बैठैछै् । अकर बाद उसब एउटा सभ्य परिवार मे वकरौर के मैया, बाबु  सम्पन्न करै वाला हरेक संस्कार सब उसब पुतरी के माध्यम से सम्पन्न करै छै । येहनं सम्पन्न करैवाला काम सब मे से यैठो वियाह संस्कार के  एउटा उदाहरण के रुप मे उल्लेख क्याल ज्या सकैछै । यी वियाह काम सम्पन्न करैले उसब पहिने  आपन मे कोयो दुरा बेनैछै आ फेन बर कनिया छानै छै । तब वियाह के दिन निश्चित क्याके आवश्य सब चीज के व्यवस्थापन क्याके बरियाती ज्याके कनिया वियाह क्याके आपन घर आनैछै । कनिया के माय बाप सेहो खौब बेसी सठनी(रजनी तथा सनेस के साथ कनिया के खौब सजल खटौली मे चढ्याके विदाइ करैछै । यै मे बर पक्ष से कनिया के घर मे बरियाती जाइछै त कनिया पक्ष से सेहो थारु संस्कार अनुसार कनिया संगे नोकनैत अरियाती बर के घर आबैछै । दुनु पक्ष एक दोसर पक्ष के खौब स्वागत मानसम्मान तथा भोज भतेर करैछै । एवम् किसिम से नोकनैत अरियाती फिर्ता हैछै और वियाह काम सम्मपन्न हैछै । 

अकर बाद कनिया सौसरा मे आपन परिवारिक जीवन शुरु करैछै जै क्रम मे सौस(ससुर संगे एकटा भद्र पुतौह के, दियोर, ननैद संगे भद्र भौजाइ के, दियादनी संगे आदर्श दियादनी के, श्रीमानसँगे एकटा आदर्श श्रीमती के भूमिका निर्वाह क्याके परिवार के आनन्दायक बन्याके बाद मे बच्चा पाइब बच्चा केनंके पालन करैछै से ल्याके एकटा सफल महताइर के दादी के समेत भुमिका एकटा पुतरी के माध्यम से सम्पन्न करै के संगे पावैन तिहार समेत सफल पूर्वक सम्पन्न करैत यी कनियापुतरी के खेल समाप्त हैछै ।

वच्चा सब बच्चे से नक्कल करैके तथा नयाँ चीज सिखैके स्वभाव के हैछै । यै किसिम से उसब मानव जीवन मे एकटा आदर्श परिवार मे सम्पन्न करैवाला सब संस्कार, दैनिक व्यवहार, पावैन–तिहार, सादी-वियाह, खेतीपाती पुतरी के माध्यम से सम्पन्न करैत रहैर्छै त अप्रत्यक्ष रुप से उ सब घर व्यवहार कथि करवै, केनंके करवै, ककर से केनं व्यवहार करवै, आपन महताइर, बाप, सौस, दीदीसंगे  केनं व्यवहार करवै यी सब चीज सब खेल के माध्यम से सिखै छै । उसब यै किसिम से परिवार के विभिन्न पात्र पुतरी के रुप मे बन्याके वकरा यै किसिम से सिखाबै के क्रम मे उसब आपने सेहो घर व्यवहार सिखै के सामाजिक प्रक्रिया के कारण यै खेल के सामाजिकीकरण के एकटा महत्वपूर्ण प्रक्रिया के रुप मे ल्या सकैछै । वहै से प्रो. मैजनी सेहो घर परिवार के सामाजिक जीवन के प्रथम पाठशाला आ महताइर बाप के पहुनका  गुरु चियैू कहने छै ।  सही मे बच्चा महताइर बाप के दुलार मलार मे खेल खेल के माध्यम से बहौत सार्भित बात सब हँसी मज्जाके मे सिखैत रहैछै  । तहै से जे परिवार के सदस्य सब शिक्षित आ सुव्यवहार के रहैछै वै परिवार के बाल बच्चा सब स्वभाविक रुप मे असल व्यवहार महताइर बाप से सिखैत समाज के असल पात्र बनै मे  सक्षम हैछै त खराव परिवार के बालबच्चा सब खराव । 

कुछ समय बाद बच्चा सब कन्हिक पैध हैछै और तब उसब कनिया पुतरी खेल से कन्हिक उपरका तह के खेल खेले लागैछै। अर्थात् तब उसब घरवा- दुवरवा तथा भाडा कुची के खेल मे बेसी आनन्द लेवे लागैछै् । 

घरवा-दुवरवा तथा भाडाकुची खेल माने माइट के घर तथा माइट से वा अन्य चीज से भाडाकुडा बन्याके खेलै वाला खेल । यै खेल मे बच्चा सब घर मे देख्लहा आवश्यक सामान सब (भाडाकुडाहरु) वट्टा, डिब्बा वा माइट के वर्तन के टुक्रा-टुक्री के रुप मे बन्दोवस्त क्याके एकटा असल परिवार के परिकल्पना क्याके वै परिवार मे देख्लहा सब काम व्यवहार सम्पन्न करैवाला खेल चियै । 

यै खेल मे छौरा छौरी दुनु पक्ष भाग लैछै और उसब तब पुतरी के रुप मे नै कि आपने से परिवार के विभिन्न सदस्य सब के विभिन्न भूमिका सब  आपन मे बाँटफाँट क्याके परिवार मे हैवाला हरेक सँस्कार सब वियाह, नाच, गीत इत्यादि हरेक काम आ आपन भूमिका अनुसार आपने से सम्पन्न करैछै । 

यै खेल के माध्यम से उसब सही रुप मे जीवन मे कनिया बर बनै से पहिने  कनिया-बर के सब व्यवहार अखुन्वे यै खेल के रुप मे कनिया के भूमिका बालबच्चा केनंके पालनाई, बच्चा केनंके चुप करनाई, केनंके पढैनाइ, सौस, ससुर, ननैद, दियोर तथा दियादनी से केनं व्यवहार करनाई आपन वियाह से पहिनै यै खेल के माध्यम से सही रुप मे सिखलेने रहैछै । यहै से वियाह के बादो वकरा व्यवहार करै मे ककरो साथ कोनो समस्या नै हैछै और अन्त मे उ आर्दश पुतौह, माय, सौस बनै मे  सक्षम भ्याके देश के सही नागरिक बनैछै । 

यै किसिम से थारु समुदाय के विभिन्न सँस्कृति तथा खेल सब अप्रत्यक्ष रुप मे सही सामाजिक मूल्य मान्यता अनुसार आदर्श शिक्षालय के भूमिका निर्वाह करैत रहै छै आ यै किसिम से यी विभिन्न सामाजिक स्कूल सब पार करैत जे बच्चा सब बढैछै उसब एकटा आदर्श सामाजिक सदस्य बनै मे सक्षम हैछै् । यी शिक्षालय के शिक्षा सब अपूर्व हैछै । यकर महत्व के सिमांकन नै क्याल ज्या सकै के कारणे यै किसिम के शिक्षा के शिक्षाविद् सब अरितिक शिक्षा (informal education)  कहैछै ।

अखनी सामाजिकीकरण के नाम मे शिक्षालय सब जे जतेक विद्या सब सिख्या रहल छै यै से वास्तविक रुप मे  वतेक सामाजिकीकरण हैत नै देख्या परैछै आ सम्भवो नै दख्या परैछै । यी हँसी के पात्र वाहेक औरो कुछ नै भ्या सकैछै । अन्त मे सामाजिकीकरण विना के बाल-बच्चा सब के  व्यवहार देख्के छक्क परनाई कोनो अस्वभाविक बात नै चियै । लेखक आपने दुनु किसिम के अनुभव केलहा लोग चियै । लेखक के समकालीन सब जब एक तरफ यी विभिन्न सामाजिक खेल रुपी संस्था से दिक्षित भेल छै त दोसर अखनी नव पीढी सब औपचारिक शिक्षा माध्यम से दिक्षित । यी दुनु किसिम के संस्था सब से दिक्षित भेलहा नागरिक सब के तुल्नात्मक अध्ययन करने से पौराणिक किसिम से दिक्षित भेल्हा तर्फ लेखक कतेकते समर्थन करनाई कोनो अपराध नै चियै लागैये ।

यी वर्तमान समय मे अर्थात् लगभग गत २०३० साल के बाद के समय मे यी नयाँ शैक्षिक, आर्थिक, प्राविधिक तथा मानसिक वातावारण के कारणे यी खेल सब पुरै रुप मे नै विलिन हैतो वकर रुप मे, व्यवहार मे आ चिन्तन मे कुछ ने कुछ परिवर्तन हैत देख्या परैछैे । अखनी यी चेथरा रुपी पुतरी परिवर्तित भ्याके काठ के पुतरी के रुप मे परिवर्तन भ्याके यकर व्यवहारिक नाम एक तरफ कठपुतली भेलछै त दोसर परफ  ३  से ९ बरिस के बच्चा सब के खेल मात्रै नै भ्याके बुढ पुरान लोग सब के मनोरन्जन के साधन  भ्याके सामाजिकीकरण नै कि पैसा कमावैके माध्यम बनल छै और आब प्लाष्टिक के पुतरी निर्माण भ्याके सिमित प्रयोग मे येलछैे । आ फेन रंगविरंगी महग महग समान से बन्नै के यकर वास्तविक philosophy से दुर बालबच्चा सब के खेलौना नै की उ युवा प्रौढ बुढाबुढी सब के लेल show case मे राखल छै कथिले त समय मे अकर कोनो वैज्ञानिक अध्ययन नै भ्याके अकर पक्ष मे बकालत के कमी चियै । तहै सै यकर वैज्ञानिक अध्ययन भ्याके यकर प्रचार-प्रसार भेनाई आवश्यक छै । 

मानव रुप मे जन्म भने से मात्रे कोई  सही मानब नै भ्या सकैछै । असल मानव बनै के लेल वकर मे मानवीय गुण सब विद्यमान होना चाही ने त उ पशु वा दानव समान हेतै आ अन्त मे समाज मे मान-सम्मान तथा प्रतिष्ठा पावे के साटा  उ तिरस्कृत वहिष्कृत, अपहेलित, घृणित र नरकीय जीवन बितावैले बाध्य भ्या जेतै । वकर यी मानव तन सार्थक नै हेतै  । कथिले त मानव जीवन गुणवान, मूल्यवान, उपयोगी, परिपक्क, पूर्ण तथा सर्वमान भेनाईये मानव जीवन सार्थक भेनाई चियै । 

वनंत मानव प्रायः जन्मे से सब गुण से भरिभराव हैछै वा समयानुसार सब किसिम के गुण सब प्रायः ग्रहण करै के क्षमता युक्त हैछै वा गुण ग्राही हैछै  । मगर वकर यी गुण सब आपने से उजागर नै भ्या सकैछै- जेनं सलाई के काँटी मे आइग  मौजुद त रहै छै  मगर उ आपने से अइग नै हैछै । वकरा आइग बनै ले घर्षण के आवश्यकता हैछै । वेहनं मानव के सार्थक मानव बनैके लेल समाजीकीकरण प्रक्रिया आवश्यक हैछै  जे काम समाज के यी कनियापुतरी नहाइत सामाजिक प्रक्रिया सब प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप मे प्रसस्त योगदान करैत रहैछै । समाज मे येहेन चीज सब के अभाव मे  मानव  जीवन कष्टमय भेनाई कोनो अस्वभाविक बात नै चियै । 

समुदाय मानव जीवन सार्थक, सफल तथा पूर्ण बनाबै के लेल विभिन्न किसिम के सामाजिक स्कूल सब (विद्या) निर्माण करने रहैछै  जे स्कूल सब परिवार के बाल-बच्चा जन्म लेला के बाद उमेरै अनुसार वकर मैया, बाबु, दाजु, दिदी, दैया, बावा, दादी सब बच्चा के विभिन्न प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष माध्यम से आवश्यकता अनुसार यी विभिन्न सामाजिक विद्या सब मे दिक्षित करैत बच्चा के पूर्ण तथा उपयोगी मानव बनावै के कारण समाज मे येहेन समाजिक  प्रक्रिया सब के संरक्षण सम्बोधन भेनाई जरुरीछै ।
समाप्त

श्रोत व्यक्तिहरु: श्रीमती तारावती चौधरी, श्रीमती कल्पना चौधरी, श्रीमती शोभा हुजदार, श्रीमती गिता चौधरी, श्रीमती रामेश्वरी चौधरी, बिराटनगर ।

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