जनमारा व्यवस्था
कोनो समाज के नीक आ बेजाय, भला आ बुरा खास क्याके वै समाज के सामाजिक व्यवस्थापर निर्भर करै छै। यदि वकर सामाजिक व्यवस्था नीक रहतै त उ समाज नीक हेवेटा करतै आ खराब रहतै त खराब हेबेटा करतै। यै बात के सब समाजशास्त्री, मानवशास्त्री आ नीक लोग सब मानै छै आ सब के माने पडतै। यी कोनो विबादास्पत बात नै। हँ, एकाध अपवाद त कते नै है छै? तब छै कि त कोनो सामाजिक व्यवस्था येहनङगो है छै जे पहिने बड नीक, बड सुन्दर आ बड हितकर लागैछै। लोग के मोहित करे लागैछै आ आपन क्षणिक गुण से सब के लोभ्या लै छै आ बाद मे फेन वकरे नाश करे लागै छै अर्थात् अन्त में मुसमरे गोली साबित है छै जे बिष के गोली उपर मुस के आकर्षित करैले मुस के नीक लागै वाला खाद्य पदार्थ: सेन्ट आ माछ के बुकनी उपर से लागल रहै छै। लेकिन “विष कहै अमृत भेलै आ सौतिन कहै मितिन भेलै” । मुस त वकर क्षणिक सुगन्ध से मोहित भ्या जाइछै, लेकिन नतिजा बड खराब है छै आ ऊ मुस के जान ल्या लैछै। वेहनं जनमारा (मुसमरा गोली नहाइत) व्यवस्था यहौ समाज अन्तर्गत घर क्या गेलछै जे पहिने त खराब बुझैबे नै करै छै आ वकर खराबी सब के बुझाबैत बुझाबैत उ समाज मे एहेन के घर क्या लेने रहैछै जकरा बाद समाज से नीकालनाई कठिन। बुझु जे भदबैरिये काखोर जब पकडत आ वकरा छोराबियौ त उ और जोर–जोर से पकडत आ बलजब्दी छोराबियौ त छला चोथनै यात।
आई तराई समाज अन्तर्गत व्याह समाज सब जे अपना के चलाक, अगुवा, हिन्दु धर्म के ठेकेदार तथा आपन के बहौत बुझ्है बाला सम्झैछै लोभ बस यै उपर से पालिस लगलाहा मुसमारा दबाई रुपी जनमारा भदबैरीया काँखोर नहाइत व्यवस्था रुपी सरुवा रोग से घायल भ्या गेल छै आ दिने दिन यी रोग बडी जोर से अन्य दोसरो तेसरो समुदय सब के घायल क्याके आपन थारु समाज में प्रवेश करैले सेहो दरबाजा ढकढका रहल छै।
कतेक समाज अखुनुवो ऐहेन छै जकरा अकर गुण अबगुण मालूम नै भेल छै आ अखुनुवो यै सरुवा रोग के निमन्त्रण द्याके बड हँसी खुशी से अपनाय रहल छै तहो मे पढल लिखल लोग सब त और बेसी, वकरौर के अखुनुवो यी व्यवस्था रोग चियै नै मालूम भेल छै आ हेबो करतै त केनं उ त अकर बाहिरी पाँलिश से मोहित भ्या गेल छै। मालूम त तब हेतै जब हृदय सैरके गन्हाबे लागतै।
लेकिन तब बुझ जे वै अवस्था में की वकर दवाई–दारु भ्या सकै छै? कहियो ने। करबो करतै त धन जन के क्षति तहो में लाभ बहौत कम। अखनी त बेसी रुपैया पावै छै त मन बड खुश है छै, पूर्व जनम के कमेलाहा भेटल सोचै छै, लडका जनमाबैके सुफल महशूस करै छै।
लेकिन बुझै नै छै जे ल्या नै रहल चियै द्या रहल चियै। लैले त नीक लागै छै मगर दैले एहनं नीक लागै तब ने। जब बेटी भातिज घरै में बुढ हेबे लागतै, रुपैया के अभाव में ककरो बियाह नै कराबे सकतै आ उ सब बेश्वावृत्ति तर्फ अग्रसर हेबे लागतै, तब यै सामाजिक व्यवस्था के गुण अबगुण वकरौर के समझै में येतै। तब कपार पकैर–पकैरके कतबो दबाई दारु करतै, तैयो कानै के सिवाय कोनो उपाय नै हाथ लागतै।
अखुनुवो जै समाज में यी सडल व्यवस्था पहिनै घर क्या गेलै वै समाज के जर–२ क्या देलकै । लोग सब बाप–२ क्या रहल छै। बेटी जलम लैते वकर बाप महताइर के कपार पर असी मन के बोझ सबार भ्या जाइछै । जलम लैते वकर बाप महताइर बेटी के मारै लेल उतारु भ्या जाइ छै । मगर करतै त की ? अन्त में आपन भाग्य के कोसे लागै छै । लेकिन बुझै नै छै जे यैहो जनमारा व्यवस्था के त हमरे सब राख्ने चियै। तहोमै नीक नहाइत से।
दिने दिने सुनै में आबैत ह्यात फलाना के लडकी बुढ भ्या गेलै लेकिन बियाह नै भेलै त आई आत्म हत्या क्या लेलकै आ यै स्थान में नारी सम्मेलन भ्या रहल छै त लडकी सब बड भारी जुलुश निकाललकै आ बहौत लडकी बेश्याबृत्ति में लाइग गेलै । त यी दोष ककर ? वै लडकी के कि वै व्यवस्था के ? कि वै समाज के ठेकेदार सब के ? जे कोइ यै जनमारा व्यवस्था के समाज में स्थान देलकै आ लडकी सब के यै किसिम के घृणित काम करै के लेल बढावा देलकै।
वास्तब में दहेज व्यवस्था समाज के ऐहेन कोढ रोग चियै जे समाज में सब के कोढी बनबैते ज्यारहल छै चाहे कनिया पक्ष हेबे वा बर, ककरो यी छोडने नै छै । दिने–दिने पलाइते जाइछै समाज में कुरीति–कुप्रथा बैढये रहल छै । अकर से कनिया पक्ष त आतंकित छेवे करै सँगे सँग बरो पक्ष के यी सराइले नै छोरने छै ।
पूरा समाज यै दहेज व्यवस्था से आतंकित तथा भयभित भ्या गेल छै । ३० मई– ५ जुन १९८२ के दिनमान पत्रिका के पेज ३३ में नारी जगत अन्तर्गत पटना से अरुण रंजन जी लडकी सब के सादी करबै के एकटा नयाँ उपाय बारे में लिखने छै जे “बर ढूँडो और जबरन पकड लाओ” अर्थात् बेगुसराय, मुंगेर तथा पटना के आस परोस में यी दहेज (बरद किनुवा) व्यवस्था ऐहेन उग्र–रुप ल्या लेने छै जैसे कन्या पक्ष दहेज दै से असमर्थ भ्याके लडकी सब के वियाह करावै से असमर्थ भ्या गेल छै। लडकी सब के आत्महत्या आ वेश्याबृत्ति तथा वकर खून सस्ता भ्या गेल छै। लेकिन तैयो तैक जब यी दहेज व्यवस्था वकरौर के गला दबाबैले नै छोडलकै तब नारी कल्याण के लेल वकरा सब के पुकार सुइन के एकटा दहेज संघर्ष समिति आन्तरिक रुप में खडा क्याल गेलै जकर लडकी के शादी करैनाई काम चियै।
वै व्यवस्था अन्तर्तगत लडकी सब केवल बर पसन्द करै छै आ कुछ दिन के बाद उ लडका अपहरित भ्याके खूद लडकी के घर हाजिर क्याल जाइछै अौर लडका के वै लडकी से बियाह करैले मजबुर क्याल जाईछै । जैसे आई काईल वै क्षेत्र में बर पक्ष सेहो बड आतंकित तथा भयभित छै। लडका के जीवन सेहो बड असुरक्षित छै। बन्दूक के नोक देख्याके शादी के लेल विवश क्याल जाइ छै । यै तरह से यी दहेज व्यवस्था कनिया पक्ष के बात त दूर ज्या दियौ बरो पक्ष के ओतबेक भयभित तथा वक र जीवन खतरा में राख्ने छै।
एतबेहक नै आई से ४–५ वर्ष पहिने जब कुछ छपाई काम से हम वराणसी गेल छेलियै तब जै छापाखाना में हमर छपाई काम चलै छेलै वहै छापाखाना में भारत मुंगेर जिल्ला के झरिया स्थान के एकटा ६५–७० वर्ष के भला आदमी जे किताब प्रकाशन के काम करै छेलै वकरो छपाई काम वहै छापाखाना में चलै छेलै ।
हम दुनु आदमी में खूब हेलमेल भ्या गेल रहै । दुनु आदमी वहै छापाखाना में ऐकै ठाम सुतियै। ऊ आदमी त बुढ रहबे करै तैयो करिब एक-आँध मन के आपन बकसा वेडिङ्ग ल्याके बिना कुली के वै ठाम से दुई–तिन माईल दूर रेल स्टेशन चैल जाई अर्थात् शारीरिक दृष्टि से बौकारे रहै । लेकिन आश्चर्य के बात–याह रहै जे उ राइत में पागल नहाइत हल्ला करै लागै जे “डाँर टुट गया गया–डाँर टुट गया” हमरा वकर हल्ला सुइन के डर त डरे हेवे, कखनो हँसियो ल्याइग ज्या त कखनो ओतबेक आश्चर्य सेहो हेबे।
एक दिन अनगुते शाहस क्याके हम वकरा पुच्छलियै जे अहाँ राइत में हल्ला करैत रहै चियै जे “डार टुट गया, डार टुट गया से अपने जागल में हल्ला करैत रहै चियै कि सपनाइत रहै चियै ? यदि जागले में हल्ला करैत रहै चियै तब त अहाँ पागल त नै भेलियै जे बुढारी में एक–आध मन के बोझा २–३ माइल आपने से ढोबै चियै आ तैयो हल्ला करैत रहै चियै “डाँर टुट गया–डाँर टुट गया” आब कि जबान हैले चाहै चियै ?
हम दुनु आदमी में खूब हेलमेल भ्या गेल रहै । दुनु आदमी वहै छापाखाना में ऐकै ठाम सुतियै। ऊ आदमी त बुढ रहबे करै तैयो करिब एक-आँध मन के आपन बकसा वेडिङ्ग ल्याके बिना कुली के वै ठाम से दुई–तिन माईल दूर रेल स्टेशन चैल जाई अर्थात् शारीरिक दृष्टि से बौकारे रहै । लेकिन आश्चर्य के बात–याह रहै जे उ राइत में पागल नहाइत हल्ला करै लागै जे “डाँर टुट गया गया–डाँर टुट गया” हमरा वकर हल्ला सुइन के डर त डरे हेवे, कखनो हँसियो ल्याइग ज्या त कखनो ओतबेक आश्चर्य सेहो हेबे।
एक दिन अनगुते शाहस क्याके हम वकरा पुच्छलियै जे अहाँ राइत में हल्ला करैत रहै चियै जे “डार टुट गया, डार टुट गया से अपने जागल में हल्ला करैत रहै चियै कि सपनाइत रहै चियै ? यदि जागले में हल्ला करैत रहै चियै तब त अहाँ पागल त नै भेलियै जे बुढारी में एक–आध मन के बोझा २–३ माइल आपने से ढोबै चियै आ तैयो हल्ला करैत रहै चियै “डाँर टुट गया–डाँर टुट गया” आब कि जबान हैले चाहै चियै ?
हमर बात ओराईलो नै रहै कि बुढ आदमी के दुनु आइख में लोर ढव ढबाइये येलै । उ एका–एक काने लाग्लै । हमरा बड तकलिफो भेल । पुच्छाला से बड पश्चाताप हेबे लागल जे बेकार पुच्छलियै । मगर जब कनहिक अने–बने के बात सब कहलियै तब उ फेन चुप भेलै । आ हमरा कहे लागल जे मास्टर साहब हम सुतल में नै जागले में हल्ला करैत रहै छी । लेकिन अकर अर्थ हम पागल नै छी, हमर साथ कुछ लाचारी छै जे हमरा “डाँर टुट–गया डाँर टुट गया’ हल्ला करै से विवश करैये। वास्तब में हमर डाँर नै टुटल छै।
हमरा घर मे तीनटा लडकी छै, जै में से दुइटा लडकी बी.ए. पास छै, आ एकटा लडकी आई.ए। लडकी सब माय के बेष पकैर लेलकै लेकिन हम एकोटा लडकी के वियाह नै कराबे सकलियै। आब त देखल नै जाइये।
देखा–देखी लडकी सब के यी पापी बाप वेश्या बनैले विवश क्या देलकै। हम वकरा कहलियै बियाह करया दियौ। अपने के लडकी के केवल नै दुनिया में सबहक बेटी भातिज सब के बियाह है छै की ? बियाह कि कोनो खराब बात चियै? ऊ आदमी और फुइट–२ के काने लाग्लै आ कहे लागल देखु तीनु लडकी के शादी कराबै के लेल हमरा करीब–करीब ५०–६० हजार के माँग करैये। जतेक हमर पास पूँजीयो नै छै । यदि हम लडकी सब के बियाह कराबैले आपन सब चीज बेच देबै तैयो तिनु लडकी के बियाह नै भ्या सकै छै । आब कहु हम केनं के वकरौर के सादी करैबै ? तहै से एकाएक मुँह से निकलैये जे “डाँर टुट गया डाँर टुट गया” । हम कहलियै तब ऐहेन खराब व्यवस्था कथिले राख्ने चियै ? जे डाँर तारै ये । अहाँ के डाँर उ तोरलक, अहाँ दोसर के डाँर तोरने हेबै आ फेन दोसरो तेसर के डाँर तोरने ह्यात् । त येहेन डाँर तोरबा व्यवस्था कथिले राख्ने चियै ? जे पुरा समाज डर टुटुवा ह्यात्। एहेन डर तोरबा व्यवस्था के हटाउ।
ऊ आदमी और सिसैक-सिसैक के काने लाग्लै आ कहे लागल जे यदि हमर समाज हमरा कहे जे अहाँ आत्म हत्या क्या लिय आ हम सब वहै दिन से दहेज के छोइर देवै त तैयो हमरा असाने लागै ये। लेकिन यी समाज त सैर गेल छै , छोरतै कते से ? दिने–२ और गढै में जाइछै। कतेक आदमी के और जान लेतै तकर ठेकान नै?
ऊ आदमी और सिसैक-सिसैक के काने लाग्लै आ कहे लागल जे यदि हमर समाज हमरा कहे जे अहाँ आत्म हत्या क्या लिय आ हम सब वहै दिन से दहेज के छोइर देवै त तैयो हमरा असाने लागै ये। लेकिन यी समाज त सैर गेल छै , छोरतै कते से ? दिने–२ और गढै में जाइछै। कतेक आदमी के और जान लेतै तकर ठेकान नै?
पालिश केलहा मुसमारा जनमारा तथा भदबैरिया काँखोर नहाइत व्यवस्था यी कथियो ने चियै ? यी येहा दहेज प्रथा चियै जे आई वई समाज सब के सामाजिक ढाँचा तोइर देलकै। आई उ सब यै व्यवस्था से बच्चैले कोन–कोन ने उपाय क्या रहल छै। मगर वकरले त यी दहेज प्रथा भदवैरिया काँखोर भ्या गेल छै जे और छोराबै छै त और कैस कैसके पकरै छै आ छोरौ लागै छै त छला चोथनै आबै छै।
मगर आपन थारु समाज के गौरब मानना चाही कि हम सब अखुनुवो यै सरुवा रोग से बाचल चियै आ सदैब प्रयत्न शील रहै के चाही जे यी सडल व्यवस्था जे आपन थारु समाज में आबै के लेल ढोका ढक–ढकाबैयै अकरा बौकार मोटगर लाठी से खिहाइरके कोसोदूर भगाइके चाही ।
कहवीयो छै (Prevention is better than cure) ने त वैहनं ह्यात जेनं देखै चियै आ सुनै चियै । आ अन्त में अकरा निकालैले कतबो कोशिश करबै त नै निकाइल सकबै । विद्वान सब कहै छै जे समाज में तिन किसिम के लोग सब है छै: बुधियार, मुर्ख तथा महामुर्ख। जे दोसर के गलती से शिक्षा प्राप्त करै छै उ बुधियार, जे आपन गलती से सिखै छै उ मुर्ख और जे अपनो गलती से नै सिख सकलक उ महा मुर्ख।
त अखैन सिखै के समय छै बुधियार बनु, मुर्ख बनु वा महामुर्ख बनु यी अपने के अधिकार के बात चियै जौ दहेज रुपी बाइढ में भाइस गेलियै त भासैत–२ वहै ठाम पुगबै जते से फेन घुइरके आइब नै सके चियै आ कपार पकैर–२ के पछताबै परत।
साभार- थारु संस्कृति, सप्तम पुष्प २०३९
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